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*विज्ञान शिक्षा में प्रायोगिक परीक्षा की महत्ता*

आधुनिक युग विज्ञान का युग कहा जाता है। मनुष्य द्वारा अर्जित सुसंगठित एवं सुव्यवस्थित ज्ञान ही विज्ञान है। यही लिपिबद्ध ज्ञान सैद्धांतिक विज्ञान है। इसके अंतर्गत जब हम वैज्ञानिकों द्वारा की गई खोजों, सैद्धांतिक अवधारणाओं की पुष्टि करना चाहते हैं उनके द्वारा निर्देशित विधि द्वारा प्रयोग करके सिद्धांत का सत्यापन करते हैं या उसकी पुष्टि करते हैं। मुझे यह कहते हुए बेहद अफसोस होता है जब प्राथमिक से उच्च कक्षाओं तक छात्र विज्ञान की अवधारणाओं को इतिहास की तरह पढ़कर-रटकर परीक्षाएं उत्तीर्ण कर रहे हैं।जब उन्हें स्वयं के द्वारा पढ़ी गई जानकारी को प्रयोग करके सिद्ध करने को कहा जाता है तो उनके हाथ पैर कांपने लगते हैं। फिर चाहे आर्कमिडीज का सिद्धांत हो,तैरने का नियम हो या रसायन के अंतर्गत गैस बनाना हॊ। मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में सन 1972 में कुछ शिक्षाविदों एवं वैज्ञानिकों ने प्रयोगनिष्ठ पद्धति से विज्ञान पढ़ाने की पहल शुरू की जिसे होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम (हो वि शि का) के नाम से जाना जाता है। होविशिका में प्रयोग निष्ठ पद्धति के महत्व को समझते हुए पाठों की संरचना इस तरह से की गई कि छात्र सहजता से विज्ञान के प्रयोग कर सके। इस पद्धति से पढ़े छात्रों में मैंने अनेक दक्षताओं का विकास देखा है। इस पद्धति में छात्र विज्ञान किट सामग्री को भली भांति जानता है। प्रयोग करता है, अवलोकन लेता है, निष्कर्ष निकलता है और अंत में सिद्धांत का प्रतिपादन करता है। यह एक सामान्य पद्धति है। जब कोई छात्र कक्षा में विज्ञान के प्रयोगों को स्वयं करता है तब उसमें आत्मविश्वास बढ़ता है हस्तकौशल बढ़ता है वैज्ञानिक दृष्टिकोण आता है। प्रयोग की सावधानियों को समझता है तथा नए प्रयोग या नवाचार करने को उत्साहित होता है। इस पद्धति से पढ़ने वाले छात्रों के लिए प्रायोगिक परीक्षा आयोजित करना, जिसमें हर छात्र व्यक्तिगत प्रयोग करता है, थोड़ा कठिन कार्य जरूर है परंतु परीक्षा हेतु प्रश्न पत्र बनाना किट सामग्री की व्यवस्था करना, परीक्षकों की नियुक्ति करना,मूल्यांकन,परीक्षाफल तैयार करना सब कुछ लीक से हटकर होता था। विज्ञान शिक्षण में प्रायोगिक परीक्षा के महत्व को मैं कुछ इस प्रकार उल्लेखित करना चाहता हूँ। 

स्वयं प्रयोग करके प्रश्नों के उत्तर देना

सामान्यतः छात्र शिक्षक द्वारा करके दिखाए गए प्रयोग से या समूह में प्रयोग करके देखता है अथवा स्वयं करता है, किंतु हो वि शि का के अंतर्गत छात्र स्वयं प्रयोग करता है। इस पद्धति से छात्र का आत्मविश्वास प्रबल होता है। भय व झिझक समाप्त होती है। छात्र स्वयं प्रयोग की भाषा पढ़ कर,समझ कर, क्रमबद्ध तरीके से प्रयोग करता है। वह एकाग्रचित होकर प्रयोग करता है। उत्तर पुस्तिका में आने पर नाम लिखता है उसमें आत्मनिर्भरता बढ़ती है उसे अपने द्वारा किए गए प्रयोग पर विश्वास विश्वास रहता है।प्रायोगिक त्रुटि होने की संभावना कम रहती है।

छात्र में प्रायोगिक कौशल आता है

विज्ञान का छात्र यदि केवल किताबी ज्ञान रखता है उसमें प्रायोगिक कौशल का अभाव होता है। वह प्रयोग करने से कतराता है विज्ञान प्रशिक्षण के दौरान मैंने अनेक शिक्षकों को भी देखा है,जो समूह में प्रयोग करने के लिए आगे नहीं आते। अपने साथी को प्रेरित करते हैं कि आप प्रयोग कीजिए मैं प्रयोग देखकर अवलोकन लिख लूंगा। हो.वि.शि.का. में मैंने देखा है कि छात्र उत्साह पूर्वक प्रयोग करता है वह अपने प्रयोग की भाषा को पढ़कर समझता है तथा दिए गए निर्देशों के अनुसार क्रमबद्ध तरीके से प्रयोग करता है। प्रायोगिक सावधानियां रखता है। प्रयोग के परिणामों को क्रमशः तालिका बनाकर अथवा स्पष्ट रूप से उत्तर पुस्तिका में दर्ज करता है। अंत में प्रयोग का परिणाम यह निष्कर्ष लिखता है। प्रयोग में होने वाली संभावित त्रुटियों के प्रति भी सतर्क रहता है। 

छात्र में प्रायोगिक कौशल क्यों आवश्यक है

बार -बार प्रयोग करने से छात्र में प्रायोगिक कौशल का विकास होता है।वह प्रायोगिक सामग्री को व्यवस्थित रखता है ,जिससे उपयोग के समय टूट-फूट में कमी देखी जा सकती है। प्रायोगिक कौशल के अभाव में छात्र हों या शिक्षक, रबर कार्क में कांच की नली फंसाते समय जोर आजमाइश करते हैं और कांच की नली टूट कर हाथ में चुभ जाती है। ऐसे ही रबर की नली मैं कांच की नली नहीं लगा पाते हैं। यहां कांच की नली पर थोड़ा सा पानी लगा देने मात्र से घर्षण कम हो जाता है और नली आराम से लग जाती है। प्रायोगिक कौशल न हो तो थर्मामीटर की रीडिंग पढ़ते समय पारे वाली घुंडी को पकड़ कर रखते हैं।वस्तुएं नापते समय स्केल को वस्तु के समांतर नहीं रखते या स्केल के शून्य से मापना शुरू नहीं करते। ऐसी अनेक कुशलताएं छात्र में अपेक्षित होती हैं। जब छात्र बार-बार प्रयोग करता है तब उसमें विज्ञान किट सामग्री का उपयोग करने की समझ बढ़ती है। रासायनिक पदार्थों का अपव्यय नहीं होता तथा किट सामग्री किट बॉक्स में या अलमारी में व्यवस्थित रखी जाती है।

वैज्ञानिक सिद्धांतों के सत्यापन की समझ बढ़ती है

विज्ञान का अध्ययन करते समय छात्र अनेक पर्यावरणीय घटनाओं से परिचित होता है। प्रयोग के माध्यम से वह सैद्धांतिक ज्ञान को प्रायोगिक रुप से जाँच सकता है जैसे- 1. छात्र ने पढ़ा होता है कि तैरने वाली वस्तु अपने भार के बराबर पानी को विस्थापित करती है। 2. पानी में पूर्णतःडुबोई जाने पर वस्तु अपने आयतन के बराबर पानी विस्थापित करती है। उपरोक्त दोनों प्रयोगों की सत्यता की जांच करने के लिए प्रायोगिक अनुभव आवश्यक है। हो.वि. शि.का. में किट में दी गई तराजू से छात्र लकड़ी के गुटके को तौलकर भार ज्ञात करता करता है। तत्पश्चात अप्लावी बर्तन में पानी भरकर गुटके को पानी में धीरे से छोड़ता है। गुटका पानी पर तैरता है किंतु अपने भार के बराबर पानी भी विस्थापित भी करता है पानी तौलकर सिद्धांत की पुष्टि कर सकता है। 

मापन संबंधी कौशल का विकास होता है

छात्र कक्षा में अध्ययन के दौरान विज्ञान के अनेक उपकरण से मापन करना सीखता है।जैसे- लंबाई,क्षेत्रफल, आयतन ,तापमान ,समय आदि। विज्ञान के प्रयोगों के अंतर्गत छात्र पैमानों की न्यूनतम ,अधिकतम तथा अल्पतम माप को पढ़ना सीखता है। यह भी सीखना है कि हर पैमाने से लिया गया पाठ्यांक बिना इकाई लिखे अधूरा या अस्पष्ट होता है। मापन की उपरोक्त अवधारणाओं के साथ वह मापन की संभावित त्रुटियों को भी समझता है वीडियो से बचने के उपाय भी सीखता है। इसकी समझ जाँचने के लिए प्रायोगिक परीक्षा में कुछ ऐसे प्रयोग देकर दक्षता की जांच कर सकते हैं जैसे- 1..दिए गए थर्मामीटर से कमरे का तापमान पढ़कर लिखो 2. बीकर में रखें गर्म पानी का तापमान ज्ञात करो। 3. दोनों के तापमान में कितना अंतर है। इसी तरह अन्य मापन संबंधित दक्षताओं का परीक्षण परीक्षा में कर सकते हैं। 

आंकड़ों को रिकॉर्ड करने,विश्लेषण एवं निष्कर्ष की समझ

हो.वि.शि.का. के अंतर्गत छात्र अनेक प्रयोग में अवलोकन लेकर तालिका बनाता है, आंकड़ों का विष्लेषण कर निष्कर्ष निकलता है जिन्हें हम इन प्रयोगों के माध्यम से जांच सकते हैं। संयोग संभाविता के प्रयोगों में चिन्हित गुटके से चालें चलकर, पौधे उगाकर उनकी ऊंचाई मापना, जंतुओं का जीवन चक्र,आकाश की ओर के प्रयोग में छ्ड़ी छाया की लंबाई, समय और दोलक आदि। इन प्रयोगों से छात्र की उपरोक्त अवधारणाओं की समझ को परखा जा सकता है।जैसे- तुम्हें 3 सतहों पर चिन्हित10 घनाकार गुटके दिए गए हैं। 20 चालें चलकर चिन्हित सतह के आंकड़े नोट करो। तालिका के आधार पर चिन्हित सतह (चित ) आने का स्तंभालेख बनाओ। लंबी अवधि के प्रयोगों में यह दक्षता जांच की जा सकती है किंतु प्रायोगिक परीक्षा मैं यह संभव नहीं है। 

तुलना करने के साथ समानता- अंतर ढूंढने की समझ

हमारे दैनिक जीवन में हम कई वस्तुओं को तथा ञीवों देखते हैं जो एक से दिखाई देते हैं। फिर भी तुलना करने पर हम उन वस्तुओं में कईअंतर देख पाते हैं। प्रायोगिक परीक्षा के माध्यम से छात्र को 2 भिन्न फूल, एक ही दिन पैदा हुए दो पिल्ले या मेमने, या दो पौधों में तुलना करवा कर छात्र की तर्क शक्ति , चीजों में अंतर करने का कौशल आदि दक्षताओं की जांच कर सकते है। 

प्रायोगिक परीक्षा का प्रश्नपत्र कैसा होना चाहिए

० छात्र की प्रायोगिक दक्षताओं की जांच तभी सफल मानी जाती है जब छात्र प्रयोग से संबंधित प्रश्नों को पढ़कर समझ सके। 

० प्रश्नों की भाषा सरल एवं स्पष्ट हो घुमावदार ,उलझानेे वाली न हो। 

० प्रश्न चरणबद्ध तरीके से पूछे जावें ताकि पूर्व में किए प्रयोगों से उसे मदद मिल सके। 

० प्रयोग हेतु दी गई सामग्री नामांकित हो, कौन सी सामग्री या रसायन प्रयोग हेतु दिया गया है, प्रश्न की इबारत में विवरण दिया जाए।जैसे- तुम्हें ABC परखनलियों में अम्ल क्षार तथा लवण के घोल दिए गए हैं। लिटमस पत्रों की सहायता से पता करो कि किस परखनली में कौन सा रसायन है? अपने उस रसायन को कैसे पहचाना स्पष्ट कीजिए। 

० प्रयोग करने के निर्देश स्पष्ट हों। किसी भी प्रयोग की सफलता प्रश्न की भाषा पर बहुत कुछ निर्भर करती है।

बिना प्रयोग किए प्रश्न का उत्तर न दे सके

प्रायोगिक परीक्षा के माने यही है कि छात्र प्रयोग करे, प्रयोग किए बिना प्रश्नों का उत्तर न लिख सके।जैसे- 

० तुम्हें विज्ञान किट का लोहे का गुटका एवं स्केल दिया गया है ।स्केल की सहायता से गुटके की लंबाई, चौड़ाई और मोटाई मापकर लिखो। गुटके के आयतन की गणना करके लिखो। इस प्रश्न का उत्तर छात्र पहले से जानता है क्योंकि उसने कई बार गुटके का उपयोग किया है। 5 ×3 × 2 = 30 घन सेंटीमीटर बिना नापतोल के लिख देगा। इसकी वजाय वस्तुएं बदल कर इसी प्रश्न को पूछा जाना चाहिए । जैसे- दी गई माचिस की डिबिया या कांच की स्लाइड आदि। 

प्रश्नों की भाषा एवं प्रयोग में नवीनता हो

सामान्यतः प्रायोगिक परीक्षा में पाठ्य पुस्तक से हटकर प्रश्न पूछा ही नहीं जाते हैं। प्रश्नकर्ता को चाहिए कि वह पौधे, फूल, फल, बीज, रसायनिक पदार्थ, मिट्टी जैसी विविध वस्तुओं पर आधारित प्रश्न पूछे तब छात्र की तर्कशक्ति एवं नए ढंग की समझ विकसित होगी। 

हस्त कौशल दक्षता की जांच कर सकते हैं

हो.वि. शि.का.के अंतर्गत छात्रों के हस्त कौशल जांचने का प्रावधान था। जिसके अंतर्गत दिए गए निर्देशानुसार स्थानीय उपलब्ध स्त्रोतों से उपकरण बनवाकर हस्त कौशल को परखा जाता था। इस कौशल हेतु निर्मित वस्तुओं का मौके पर ही परीक्षण किया जाता था। यदि कापी के साथ अटैच की जाने वाली वस्तुएं हों तो उन्हें कॉपी में जोड़कर बांध दिया जाता था। इस दक्षता के लिए प्रश्न इस प्रकार के होते थे,जैसे – 

० दिए गए कागज एवं स्केल की मदद से 20 सेंटीमीटर लंबा तथा 10 सेंटीमीटर चौड़ा लिफाफा बनाकर गोंद से चिपकाओ। 

० दिए गए डिस्पोजल गिलास, धागे आलपिन, एवं पैमाने की मदद से एक तराजू बनाओ। ० दिए गए ग्राफ कागज की पट्टी पर 2 मिली मीटर अल्पतम माप का 10 सेंटीमीटर लंबा पैमाना बनाओ। उपरोक्त प्रयोगों से छात्र के हस्तकौशल, कार्यकुशलता, एवं स्वच्छता सही माप की दक्षता की जांच की जा सकती थी। 

सामग्री की व्यवस्था अथवा जुगाड़ करना

प्रायोगिक परीक्षा के दिन लगने वाली संभावित सामग्री की सूची शाला के विज्ञान शिक्षक को परीक्षा पूर्व दी जाती थी। जरूरत पड़ने पर शिक्षक आसपास की शाला से भी विज्ञान किट के जुगाड़ कर लेते थे जैसे- थर्मामीटर, दिकसूचक नपनाघट, आदि

परीक्षा उपरांत यह सामग्री संबंधित शाला को वापस कर दी जाती थी। इस व्यवस्था से किट सामग्री के अभाव में प्रयोग बदलना नहीं पड़ता था। कुछ सामग्री की जुगाड़ छात्रों से करा ली जाती थी जैसे -फसलों के पौधे, बीज, फूल, फल आदि। पूर्व वर्षों में यह व्यवस्था नहीं थी अतः एक या दो थर्मामीटर होने पर छात्र प्रयोग के बाद प्रतीक्षा करते थे जिससे समय अधिक लगता था साथ ही परीक्षा में अव्यवस्था भी हो जाती थी। 

प्रायोगिक सावधानियों की महत्ता जानना

प्रयोगों के सही परिणाम आना,छात्रों द्वारा प्रयोग के दौरान रखी गई सावधानी पर निर्भर रहता है । खासकर रसायन के प्रयोग में अम्ल का ड्रापर क्षार में डाल दें या प्रयोग के बाद परखनलियों की ठीक ढंग से सफाई ना हो तो परिणाम सही नहीं आते हैं। अनुभव होने पर छात्र प्रयोग के पूर्व एवं पश्चात प्रयोग सामग्री को साफ करके रखते हैं। जो एक अच्छी आदत है। पैमाना हो, थर्मामीटर हो या समय का मापन हो प्रयोग की एक गलत माप सारे आंकड़ों को प्रभावित कर देती है। अतः प्रयोग के पूर्व छात्र को सभी सावधानियों से भलीभांति परिचित होना आवश्यक है। 

प्रयोग करने की समय सीमा का ध्यान रखना

प्रायोगिक परीक्षा हेतु सामान्यतः 15 से 20 मिनट का समय दिया जाता था। प्रत्येक छात्र को पांच प्रयोग करने होते थे। अतःप्रयोग इस तरह के पूछे जाते थे जो प्रायोगिक गतिविधि करते हुए छात्र समय सीमा में सब कुछ संपन्न कर ले। प्रयोग के परिणाम उत्तर पुस्तिका में लिख ले। 

किन दक्षताओं पर प्रयोगिक प्रश्न बनते थे

वर्ष भर में छात्र ने विज्ञान विषय में जितने भी प्रयोग किए होते हैं, उन्हें 6 भागों में बांटा गया था। 

1. मापन -जिसके अंतर्गत दूरीनापना, क्षेत्रफल आयतन ,वजन तौलना, तापमान आदि। 

2. पर्यावरण के प्रति सजगता -पौधों, फसलों, जीव -जंतुओं, आदि पर आधारित प्रयोग। 

3. रसायन- पृथक्करण,अम्ल ,क्षार,लवण आदि। 

4. वैज्ञानिक प्रक्रियाएं- अवलोकन करना, रेखा चित्र बनाना,समूह बनाना आदि। 

5. सामान्य अवधारणाएं चुंबक,आयतन, ऊष्मा,प्रकाश, शरीर केआंतरिक अंग आदि। 

6. स्थानीय स्त्रोत से उपकरण बनाना... उपरोक्त में से कोई पांच प्रयोग छात्र को करना होता था। इस तरह हो.वि.शि. का. के अंतर्गत विज्ञान में प्रायोगिक परीक्षा की महत्ता एवं उससे संबंधित दक्षताओं का परीक्षण छात्रों पर किया जाता था। इस पद्धति की कुछ सीमाएं भी है जैसे लंबी अवधि के प्रयोग केवल लिखित परीक्षा में ही पूछे जा सकते हैं। अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि कोई भी छात्र बिना प्रायोगिक कौशल सीखे एक अच्छा शिक्षक, प्राध्यापक या वैज्ञानिक नहीं बन सकता। इस दिशा में होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम देश का एकमात्र ऐसा कार्यक्रम था जिसने यह सब संभव करके दिखाया है। 

उमेश चौहान 

स्रोत शिक्षक होविशिका टिमरनी 







 
 
 

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